जागरण
उठो, उठो अब बहुत सो लिये
सुख स्वप्नों में बहुत खो लिये
दुःख दारुण पर बहुत रो लिये
अश्रु से दामन बहुत धो लिये
उठो करवटें लेना छोड़ो
दोष भाग्य को देना छोड़ो
नाव किनारे खेना छोड़ो
दिवा स्वप्न को सेना छोड़ो
जागो दिन चढ़ने को आया
श्रम सूरज बढ़ने को आया
नई राह गढ़ने को आया
देव तुम्हें पढ़ने को आया
होने आये जो हो जाओ
अब न खुद से नजर चुराओ
बल भीतर है बहुत जगाओ
झूठ-मूठ न देर लगाओ
नदिया सा बह जाने दो मन
हो वाष्प उड़ जाने दो मन
चम्पा सा खिल जाने दो मन
लहर लहर लहराने दो मन
अनिता निहालानी
१५ जून २०१०
लिखती रहो...तुम्हारा लिखा पसंद करने वाले बहुत हैं...
जवाब देंहटाएंsanjay bhaskar
बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
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