शनिवार, जून 2

एक असीम गीत भीतर है


एक असीम गीत भीतर है


निर्मल जैसे शुभ्र हिमालय
स्वयं अनंत है व्यक्त न होता
यही उहापोह मन को डसता !

एक असीम गीत भीतर है
गूंज रहा जो प्रकट न होता
यही उहापोह मन को खलता !

खिल न पाता हृदय कुसुम तो
कलिका बनकर भीतर घुटता
 यही उहापोह मन में बसता !

सुरभि निखालिस कैद है जिसकी
ज्योति अलौकिक कोई ढकता 
यही उहापोह लिये तरसता !

सबके उर की यही कहानी
कह न पाए कितना कहता
 देख उहापोह मन है हँसता !

10 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा सब के ह्रदय असीम भावो के ओत-प्रोत है..कुछ व्यक्त हो जाते है कुछ दबे रह जाते हैं.. सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  2. आपकी रचनाए हमेशा उत्साह ,एक नई ऊर्जा का संचार करती हैं.....!!

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  3. एक असीम गीत भीतर है
    गूंज रहा जो प्रकट न होता
    यही उहापोह मन को खलता !

    सच में.....
    कभी-कभी.....
    अभी भी....!!

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  4. सबके उर की यही कहानी
    कह न पाए कितना कहता
    अक्षरशः सत्य!

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  5. सबके उर की यही कहानी .....सचमुच....
    खूबसूरत रचना...
    सादर।

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  6. ये उहापोह चलता ही रहता है शायद उम्र भर....सुन्दर प्रस्तुति।

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