रविवार, सितंबर 20

आकाश कब बुलाये

 आकाश कब बुलाये

भूली सी कोई याद

  जाने कब से सोयी है

 हर दिल की गहराई में 

  करती है लाख इशारे जिंदगी

किसी तरह वह याद 

 दिल की सतह पर आये 

युग-युग से  किया विस्मृत जिसे 

बेवजह माया के हाथ पिसे

अब करे कोई क्या उपाय 

कि बिछड़े उस प्रियतम की 

याद आये... 

और उसका विरह सताये 

फिर देह भाव छूटे 

पिंजर मन का टूटे 

थे असीम से छूटे 

सीमा अब न भाए

धरती यही सोचे 

आकाश कब बुलाये !


7 टिप्‍पणियां:

  1. ये माया है ना जब से सफलता का प्रतीक बनी है
    तब से अनेक कहानियां बनाई है इसने।
    पर सच है न कि एक याद में जिंदगी बसर करती है आज भी।
    प्यारी रचना।
    भावपूर्ण हृदय स्पर्श करती हुई।

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