बुधवार, दिसंबर 9

मन और मौन

मन और मौन
शब्दों की गलियों में गोल घूमता है
मन का मयूर यह व्यर्थ ही झूमता है
 
अनंता-अनंत जो चहुँ ओर व्याप्त रहा
नाप लिया हो जैसे ‘अम्बर’ नाम दिया
 
‘मन’ भी आकाश सा कोई न माप सका
स्वयं सीमित होकर शब्द आकार लिया
 
शब्द अभी पीड़ा दें पल में सहला दें
स्वयं ही रचे मन शब्दों से बहला दे
 
नाम-रूप भरम में नाम ही बंधन है
मौन आश्रय जिसे पार ही चिरंतन है  

11 टिप्‍पणियां:

  1. नाम-रूप भरम में नाम ही बंधन है
    मौन आश्रय जिसे पार ही चिरंतन है
    बहुत सही

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.12.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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  3. सुन्दर और सारगर्भित पंक्तियाँ..।

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