सोमवार, मई 3

टूटते ख्वाब


टूटते ख्वाब


महसूस करें तो दुख बहुत है बाहर 

भीतर कुछ और क्यों बनाया जाए 


गुजर जाएगा वक्त ही है आखिर यह 

बुरा कहकर क्यों खुद को सताया जाए 


लगा हुआ है हर शख्स अपनी कुव्वत से 

कैसे वायरस को जिस्म से भगाया जाए 


दम तोड़तीं श्वासें कभी जलती हुईं देहें 

किस-किस मंजर से ध्यान अपना हटाया जाए 


बहुत बेमुरव्वत है जिंदगी सुना तो था 

छोटे बच्चों को कैसे यकीं दिलाया जाए 


टूटते ख्वाबों  को देखा है हर किसी  ने  

टूटती साँसों को किस तरह बचाया जाए 


खत्म होगी दुनिया कभी किताबों में पढ़ा था 

कतरा-कतरा क्यों इसका वजूद मिटाया जाए 

 

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपका आख़िरी शेर बहुत बेहतर है, काबिले दाद है - ख़त्म होगी दुनिया कभी किताबों में पढ़ा था, कतरा-कतरा क्यों इसका वजूद मिटाया जाए?

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  2. टूटते ख्वाबों को देखा है हर किसी ने

    टूटती साँसों को किस तरह बचाया जाए


    खत्म होगी दुनिया कभी किताबों में पढ़ा था

    कतरा-कतरा क्यों इसका वजूद मिटाया जाए ----समय का चेहरा दिखाती रचना।

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  3. आशा और उम्मीद रखना जरूरी है ... ये समय कष्ट का है , सब के लिए है और निकल भी जाएगा ... भावपूर्ण रचना ...

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