tag:blogger.com,1999:blog-6474592890557237793.post6518611472064925295..comments2024-03-28T10:26:57.335+05:30Comments on मन पाए विश्राम जहाँ: क्या दमन ही आज की पहचान हैAnitahttp://www.blogger.com/profile/17316927028690066581noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-6474592890557237793.post-83395040053872623982011-10-12T14:46:20.794+05:302011-10-12T14:46:20.794+05:30सुभानाल्लाह ........सुभानाल्लाह ........Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6474592890557237793.post-90619719654149771142011-10-10T22:15:27.514+05:302011-10-10T22:15:27.514+05:30आधुनिक होना शरम को, ताक पर देना है रख
भागते रहना स...आधुनिक होना शरम को, ताक पर देना है रख<br />भागते रहना सुबह से शाम तक, फिर बेसबब<br />समय बदल रहा है तो शरम को ताक पर रख कर ही तो हम आधुनिक हुए जाते हैं।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6474592890557237793.post-30195117087818278052011-10-10T21:13:40.695+05:302011-10-10T21:13:40.695+05:30एक अनदेखी दिशा से बढ़ रहा तूफान है
क्या दमन ही आ...एक अनदेखी दिशा से बढ़ रहा तूफान है <br />क्या दमन ही आज की पहचान है !<br /><br />इस बढते तूफ़ान को अभी से नियंत्रित करने की आवश्यकता है. अन्यथा परिणाम घातक हो सकते हैं. आम जनता भी अब सियासत की चालें समझने लगी है. सुंदर सामायिक कविता जन जागरण की मुहिम के साथ. शुभकामनायें.<br /><br />अनीता जी बहुत बहुत धन्यबाद मेरी कविता "बतकही" को सराहने और पसंद करने और सुंदर टिप्पणी के लिये. आप अवश्य रचना दीक्षितhttps://www.blogger.com/profile/10298077073448653913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6474592890557237793.post-72204015936199342722011-10-10T20:06:40.578+05:302011-10-10T20:06:40.578+05:30मौन हैं जिनके सहारे, सौंप डालीं कश्तियाँ
सिर झुकाए...मौन हैं जिनके सहारे, सौंप डालीं कश्तियाँ<br />सिर झुकाए झेलतीं हैं, दर्द सारी बस्तियां<br /><br />...बहुत सटीक प्रस्तुति..आभारKailash Sharmahttps://www.blogger.com/profile/12461785093868952476noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6474592890557237793.post-15632274789419061742011-10-10T17:31:56.379+05:302011-10-10T17:31:56.379+05:30सोचने को मजबूर करती कविता।
सादरसोचने को मजबूर करती कविता। <br /><br />सादरYashwant R. B. Mathurhttps://www.blogger.com/profile/06997216769306922306noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6474592890557237793.post-60779394096476303602011-10-10T17:28:13.851+05:302011-10-10T17:28:13.851+05:30तोड़ डाले हौसले व हक सभी प्रतिरोध के--
बहुत सुन्द...तोड़ डाले हौसले व हक सभी प्रतिरोध के--<br /><br />बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||<br />बधाई स्वीकार करें ||रविकर https://www.blogger.com/profile/00288028073010827898noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6474592890557237793.post-10716113800441637212011-10-10T14:23:42.415+05:302011-10-10T14:23:42.415+05:30यह तूफान कभी तो थमेगायह तूफान कभी तो थमेगाप्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6474592890557237793.post-34158872565095925472011-10-10T13:22:00.174+05:302011-10-10T13:22:00.174+05:30तोड़ डाले हौसले व हक सभी प्रतिरोध के
रौंधकर सपने, ...तोड़ डाले हौसले व हक सभी प्रतिरोध के<br />रौंधकर सपने, किये हैं मूक स्वर आक्रोश के....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..Maheshwari kanerihttps://www.blogger.com/profile/07497968987033633340noreply@blogger.com