tag:blogger.com,1999:blog-6474592890557237793.post7832799561460479196..comments2024-03-28T10:26:57.335+05:30Comments on मन पाए विश्राम जहाँ: बेगानी है हरी दूब भीAnitahttp://www.blogger.com/profile/17316927028690066581noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-6474592890557237793.post-77160877005203135492012-01-31T17:38:28.409+05:302012-01-31T17:38:28.409+05:30सुंदर प्रस्तुति!!सुंदर प्रस्तुति!!मनोज पटेलhttps://www.blogger.com/profile/18240856473748797655noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6474592890557237793.post-43909109436798917952012-01-30T18:04:16.584+05:302012-01-30T18:04:16.584+05:30सम्बन्धों में खुशी छिपी थी
रहे कैद हम निज सीमा म...सम्बन्धों में खुशी छिपी थी <br />रहे कैद हम निज सीमा में,<br />एक ऊर्जा का प्रवाह था<br />रोक दिया है जिसको हमने !<br /><br />संबंधों का अनादर कुंठा को उत्पन्न करता. संवाद स्थापित करना नितांत आवश्यक है. सुंदर प्रस्तुति के लिये बधाई.रचना दीक्षितhttps://www.blogger.com/profile/10298077073448653913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6474592890557237793.post-42250756468792907242012-01-30T16:11:34.152+05:302012-01-30T16:11:34.152+05:30जीवन इक अनंत पर्व है
संबंधों में राज छिपा है,
पह...जीवन इक अनंत पर्व है <br />संबंधों में राज छिपा है, <br />पहले खुद से, फिर उस रब से <br />फिर जग से संवाद हुआ है ! <br /><br />पूरा जीवन इंसान संबंधों में इसी संवाद को खोजते रहता है, <br />किन्तु एक बार अपने पर दृष्टि डालते ही <br />सारे संवाद समाप्त हो जाते हैं...***Punam***https://www.blogger.com/profile/01924785129940767667noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6474592890557237793.post-76624784857274917812012-01-30T16:00:33.177+05:302012-01-30T16:00:33.177+05:30जीवन इक अनंत पर्व है
संबंधों में राज छिपा है,
पहले...जीवन इक अनंत पर्व है<br />संबंधों में राज छिपा है,<br />पहले खुद से, फिर उस रब से<br />फिर जग से संवाद हुआ है ! <br /><br />सबसे पहले खुद से होना ही लाज़मी है......सुन्दर पोस्ट|Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6474592890557237793.post-27134119008200413502012-01-30T14:54:34.615+05:302012-01-30T14:54:34.615+05:30अपने अन्दर के हरी दूब से हम ही कितने बेगाने होते ह...अपने अन्दर के हरी दूब से हम ही कितने बेगाने होते हैं..और शब्दों की खुशियाँ जीने में लगे रहते हैं.. कितनी गहराई लिए आपकी रचना होती हैं..Amrita Tanmayhttps://www.blogger.com/profile/06785912345168519887noreply@blogger.com