शुक्रवार, अप्रैल 26

ऐसी हो अपनी पूजा


ऐसी हो अपनी पूजा


लक्ष्य परम, हो मन समर्पित
 हृदयासन पर वही प्रतिष्ठित !

शांतिवेदी, ज्ञानाग्नि प्रज्वलित
भावना लौ, प्रेम पुष्प अर्पित !

पुलक जगे अंतर, उर प्रकम्पित
सहज समाधि, अश्रुधार अंकित !

छंटें कुहासे, करें ज्योति अर्जित
आनंद प्रसाद पा, बीज प्रस्फुटित !

मिले समाधान, लालसा खंडित
सुन-सुन धुन, मन प्राण विस्मित !

अव्यक्त व्यक्त कर, अंतर हर्षित
दृष्टा को दृश्य बना, आत्मा शोभित 

12 टिप्‍पणियां:

  1. अव्यक्त व्यक्त कर, अंतर हर्षित
    दृष्टा को दृश्य बना, आत्मा शोभित

    ...बहुत सुन्दर और गहन अभिव्यक्ति...आभार

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  2. उत्तर
    1. प्रतिभा जी, आपने सही कहा,मति स्थिर होने पर ही समाधान मिलता है

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  3. बहुत सुन्दर.....
    मन आनंदित हुआ....

    सादर
    अनु

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  4. अव्यक्त व्यक्त कर, अंतर हर्षित
    दृष्टा को दृश्य बना, आत्मा शोभित

    बढ़िया विचार परक प्रस्तुति -

    करो आत्म चिंतन ,करो योग साधन

    ये तन होगा निर्मल ,ये मन होगा पावन

    ये जीवन हो दुनिया की सेवा में अर्पण ,

    तो जाए अपनी ये गैरों की दुनिया .

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  5. सुन्दर..अति सुन्दर...ऐसी ही हो अपनी पूजा..

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