सोमवार, दिसंबर 12

जिसकी प्यास अधूरी रब की

जिसकी प्यास अधूरी रब की
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दुःख को भी न जाना जिसने 
सुख का स्वाद चखे वह कैसे 
दुःख को ही जो सुख मानता 
सुख हीरे को परखे कैसे ?

हार-जीत तो लगी रहेगी 
हँसना-रोना ही जीवन है,
जिसने सूत्र यही अपनाया 
कहाँ उसे मुक्ति का क्षण है !

पीड़ा सहते सहते बढ़ता 
श्वास फुलाकर सीढ़ी चढ़ता,
चन्द पलों की राहत को ही 
जीवन की हर निधि जानता !

नहीं उसे प्राप्य जीवन का 
जिसकी प्यास अधूरी रब की,
तिल भर दुःख भी नहीं बनाता 
वही प्रेरणा बनता सबकी !

जो भी हम भीतर रचते हैं 
वही बाहर से वापस मिलता,
अंतर में यदि स्वर्ग सृजा है 
बाहर कुसुमों का पथ सजता !

3 टिप्‍पणियां:

  1. जैसा मन वैसा ही संसार ... सच कहा आपने ... अन्दर की सुन्दरता जरूरी है बाहर की अच्छाई देखने के लिए ....

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