बुधवार, मार्च 3

मन सुमन बना खिलना चाहे

मन सुमन बना खिलना चाहे 

इस पल में कल को ले आना 

बीती बात को दोहराना 

दिलों की पुरानी आदत है !

जीवन प्रतिक्षण कुछ और बने 
रहो गतिशील बस यही कहे 
मुड़ देखे, मन की चाहत है !

हर घटना कुछ दे मुक्त हुई 
वह घड़ी स्वयं में  रिक्त हुई  
  जा टिकना मिथ्या राहत है !
 
नव जीवन में जगना चाहे 
मन सुमन बना खिलना चाहे 
जो पल में जिए इबादत है !

मृत को क्यों ‘अब’ में ढोएं हम 
नित नवल निशा में सोएं  हम 
रहे संग सदा विरासत है !

 

16 टिप्‍पणियां:

  1. "जीवन प्रतिक्षण कुछ और बने
    रहो गतिशील बस यही कहे
    मुड़ देखे, मन की चाहत है !"


    बहुत अच्छी बात कही आपने।

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  2. सुंदर और सकारात्मक सोच लिए हुए प्यारी कविता ।

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  3. बहुत प्यारा सा गीत...

    सादर,
    डॉ. वर्षा सिंह

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  4. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 04.03.2021 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
    धन्यवाद

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  5. बहुत सुंदर प्रेरक कविता आदरणीय अनीता दीदी, सादर नमन ..

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  6. आप सभी विद्वजनों का स्वागत व आभार !

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  7. नव जीवन में जगना चाहे
    मन सुमन बना खिलना चाहे
    जो पल में जिए इबादत है !
    बहुत सुन्दर संदेश देती बेहतरीन रचना । सादर नमन ।

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  8. वाह....
    बहुत सुन्दर बात ..कितना कुछ कह दिया इन साधारण से शब्दों में..
    बहुत बढ़िया..

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