शनिवार, जुलाई 17

ध्यान


ध्यान 

जब हम बोलते हैं 

भीतर या बाहर

तो दूसरा रहता  है 

जब चुप रहते हैं 

तो कोई दूसरा नहीं होता 

एक हो जाती है सारी कायनात 

जब घटता है मौन

भीतर या बाहर

फिर जहाँ न राग रह  जाता है न द्वेष 

न सुख और न ही दुःख 

जहाँ खुद से मिलना होता है 

और मृत्यु का भय भी खो जाता है 

उस मौन को पा लेना ही ध्यान है 

यही स्रोत है जीवन का 

शायद यहीं रहते भगवान हैं !


13 टिप्‍पणियां:

  1. काश इस मौन की गहराई तक पहुंच पाएँ ।
    गहन अभिव्यक्ति

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  2. मौन की इस अभिव्यक्ति को सुन पाना इतना आसान नहीं होता ... मौन ही रहना होता उसे सुन पाने के लिए भी ... सुन्दर भावपूर्ण रचना है ...

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  3. सुन्दर एवं भावपूर्ण अभिव्यक्ति!!

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  4. ध्यानं शरणं गच्छामि ‌‌। अति सुन्दर भाव ।

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  5. मौन की गहराई में पहुंचना भी दुर्गम है परन्तु जहां चाह वहां राह....उत्तम रचना।

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  6. अनुराधा जी, संदीप जी व उर्मिला जी स्वागत व आभार!

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  7. बहुत ही गहरे भाव..सराहनीय सृजन।
    सादर

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