शनिवार, दिसंबर 25

संकरा है वह द्वार प्रभु का


संकरा है वह द्वार प्रभु का

क्रिसमस उसकी याद दिलाता
जो भेड़ों का रखवाला था,
आँखें करुणा से नम रहतीं
मन जिसका मद मतवाला था !

जो गुजर गया जिस घड़ी जहाँ
फूलों सी महकीं वे राहें,
दीनों, दुखियों की आहों को
झट भर लेती उसकी बाहें !

सुन यीशू उपदेश अनोखे
 भीड़ एक पीछे चलती थी,
 अधिकार से भरे कहते थे 
 चकित हुई सी वह गुनती थी !

नहीं रेत पर महल बनाओ  
जो पल भर में ही ढह जाते,
चट्टानों पर नींव पड़ी तो  
गिरा नहीं सकतीं बरसातें !

यहाँ मांगने से मिलता है
खोला जाता है सदा द्वार,
ढूँढेगा जो, पायेगा ही
 लुटाने को प्रभु है तैयार !

कितने रोगी स्वस्थ हुए थे
अनगिन को दी उसने आशा,
तूफानों को शान्त किया था
अद्भुत थी जीसस की भाषा !

प्रभु के प्यारे पुत्र कहाते
जन-जन की पीड़ा, दुःख हरते,
एक बादशाह की मानिंद 
संग शिष्य  के डोला करते !

जो कहते थे, पीछे आओ
सीखो तुम भी मानव होना,
बेटा हूँ प्रिय परमेश्वर का 
मार्ग जानता सहज स्वर्ग का !

संकरा है वह द्वार प्रभु का
 उससे ही होकर जाना है,
यीशू ने जो बात कही थी
हमको उसे आज़माना है ! 


5 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(26-12-21) को क्रिसमस-डे"(चर्चा अंक4290)पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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