बुधवार, फ़रवरी 16

सब कुछ सौंप दिया है तुझको


हम ईश्वर से कहते हैं कि अपना सब कुछ तुझे सौंपते हैं पर ईश्वर, वह क्या कहता है, क्या उसने सब कुछ मानव को नहीं दे दिया है।


सब कुछ सौंप दिया है तुझको


तेरी ख़ातिर ही तो मैं हूँ

व्यर्थ ही तू फ़िक्र में डूबा, 

उर अंतर श्रद्धा  से भर ले 

अप्राप्य रहेगा कुछ भी ना


संग सदा सहज डोलेंगे

उलझन में तू क्यों भ्रमता है,

मन जो गोकुल बन सकता था

क्यों उदास सा नभ तकता है !


तू है मेरा प्रियतम अर्जुन !

वंचित क्यों है परम प्रेम से,

क्या जग में जो पा न सके तू 

जग चलता है अमर प्रेम से !


सब कुछ सौंप दिया है तुझको

अगन, पवन, जल और धरा में,

किस आकर्षण ने बाँधा है 

डोले सुख-दुःख, मरण-जरा में !


करुणा सदा बरसती सब पर

बस तू मन को पात्र बना ले,

जीवन बन जायेगा मंदिर

दिवस-रात्रि का गान बना ले ! 


17 टिप्‍पणियां:

  1. यही तो माया है ... किसने किसको क्या कब दिया ... मैंने मुझको दिया, इश्वर ने, मैंने, ... शायद सब माया है ...

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17.02.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4344 में दिया जाएगा| ब्लॉग पर आपकी आमद का इंतजार रहेगा|
    धन्यवाद
    दिलबाग

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 17 फ़रवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  4. करुणा सदा बरसती सब पर

    बस तू मन को पात्र बना ले,

    जीवन बन जायेगा मंदिर

    दिवस-रात्रि का गान बना ले !... बहुत ही सुंदर।
    सादर

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  5. बहुत सुन्दर !
    तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा ---

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  6. जीवन का सबसे बङा लक्ष्य
    या उपलब्धि कहिए,
    एक ही है,
    सुपात्र बन पाना ।

    -/\-

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  7. बहुत सुंदर।
    आशा और विश्वास से परिपूर्ण सुंदर सृजन।

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  8. सुशील जी, कुसुम जी और संगीता जी आप सभी का हृदय से स्वागत व आभार!

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