सरल और तरल
चीजें जैसी हैं, वैसी हैं
हम उन्हें खींच कर
बनाना चाहते हैं
जैसी हम उन्हें देखना चाहते हैं
यही खिंचाव तो तनाव है
तनाव भर देता है मन को
उलझन से
कर देता है जटिल
छा जाती है आत्मग्लानि व्यर्थ ही
चीजें जैसी हैं सुंदर हैं
मान लें यदि
कोई मापदंड न बनायें
कोई निर्णय न दें
पक्ष या विपक्ष में
स्वयं को सदा
सही सिद्ध करने की
ज़िद छोड़ दें
तो सारा तनाव घुल जाता है
मन सरल और तरल होता जाता है
और आत्मा
अपने सहज स्वरूप में
खिली रहती है !
अनायास ही सहज प्रेम
जो चारों ओर बिखरा है
हवा और धूप की तरह
प्रतिबिंबित होने लगता है भीतर से !