इश्क की दास्ताँ
उसने दिए थे हीरे
हम कौड़ियाँ समझ के
जब नींद से जगाया
रहे करवटें बदलते
ओढ़ा हुआ था तम का
इक आवरण घना सा
माना स्वयं
को घट इक जो ज्ञान से बना था
गीतों में प्रेम
खोजा झाँका न दिल के भीतर
दरिया कई बसे थे
बहता था इक समुन्दर
गहराइयों में दिल
की इक रोशनी सदा है
उतरा नहीं जो डर
से उस शख्स से जुदा है
तनहा नहीं किसी
को रखता जहाँ का मालिक
हर दिल में जाके
पहले वह आप ही बसा है
जिस इश्क के
तराने गाते हैं लोग मुस्का
मरके ही मिलता
सांचा उस इश्क का पता
उस एक का हुआ जो
हर दिल का हाल जाने
सबको लगन है
किसकी यह राज वही जाने
तनहा नहीं किसी को रखता जहाँ का मालिक
जवाब देंहटाएंहर दिल में जाके पहले वह आप ही बसा है----- वाह! बहुत खूब!!!!
स्वागत व आभार विश्वमोहन जी !
हटाएंWah, Such a wonderful line, behad umda, publish your book with
जवाब देंहटाएंOnline Book Publisher India
स्वागत व आभार !
हटाएंलाजवाब !! बहुत खूब आदरणीया ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार राजेश जी !
हटाएंस्वागत व आभार ज्योति जी !
जवाब देंहटाएंहर दिल में वही बसा है पर उस प्रेम को हर कोई देख नहीं पाता ... भावपूर्ण ...
जवाब देंहटाएंसही कहा है आपने....
जवाब देंहटाएंगहराइयों में दिल की इक रोशनी सदा है
जवाब देंहटाएंउतरा नहीं जो डर से उस शख्स से जुदा है
प्रेम को हर कोई देख नहीं पाता ... भावपूर्ण
सही कहा है आपने संजय जी..आभार !
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