फागुन झोली भरे आ रहा
सुनो ! गान पंछी
मिल गाते
मदिर पवन डोला
करती है,
फागुन झोली भरे आ
रहा
कुदरत खिल इंगित
करती है !
सुर्ख पलाश
गुलाबी कंचन
बौराये से आम्र
कुञ्ज हैं,
कलरव निशदिन
गूँजा करता
फूलों पर तितली
के दल हैं !
टूटा मौन शिशिर
का जैसे
एक रागिनी सी हर
उर में,
मदमाता मौसम छाया
है
सुरभि उड़ी सी भू
अम्बर में !
नव ऊर्जित भू
कण-कण दमके
हलचल, कम्पन हुआ गगन में,
पवन चले फगुनाई
सस्वर
मधुरनाद गुंजित
तन-मन में !
भीनी-भीनी गंध
नशीली
नासापुट में महक
भर रही,
रंगबिरंगे
कुसुमों से नित
वसुंधरा नित राग
रच रही !
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 22.02.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2889 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत बहुत आभार दिलबाग जी !
हटाएंबहुत खूब !मंगलकामनाएं आपको
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार सतीश जी !
हटाएंबहुत ही सुंदर कविता...फूलों पर तितली के दल हैं...
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार किरमानी जी !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर कविता प्रस्तुत की।
जवाब देंहटाएंInspirational information in hindi
फागुन की रूत छा गयी वातावरण में जैसे ...
जवाब देंहटाएंशब्दों का जाल महक ले आया मौसम में ...
स्वागत व आभार !
हटाएंक्या खूबसूरत अंदाज़ है. मन को उभरानेवाली एक दिलकश रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार संजय जी !
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