हर कोई अपने जैसा है
न ऐसा न ही वैसा है, बस
हर कोई अपने जैसा है !
भोला शावक भरे कुलाँचे
वनराजा की शान अनोखी,
गाँव की ग्वालिनें प्यारी हैं
गरिमामयी महारानी भी !
यहाँ न कोई कम या ज़्यादा
आख़िर नर है न कि पैसा है,
न ऐसा न ही वैसा है, बस
हर कोई अपने जैसा है !
कारीगर, मज़दूर न होते
महल-दुमहले कैसे बनते,
अल्पज्ञ, अज्ञानी यदि न हो
गुरुजनों को कौन पूछते !
मित्र बने समझ यही अपनी
फिर दुःख जीवन में कैसा है ?
न ऐसा न ही वैसा है, बस
हर कोई अपने जैसा है !
यहाँ न कोई कम या ज़्यादा
जवाब देंहटाएंआख़िर नर है न कि पैसा है,
न ऐसा न ही वैसा है, बस
हर कोई अपने जैसा है !..चिंतनपूर्ण रचना।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 12 नवंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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न ऐसा न ही वैसा है, बस
जवाब देंहटाएंहर कोई अपने जैसा है !
बहुत सुन्दर सृजन
अल्पज्ञ, अज्ञानी यदि न होते, गुरुजनों को कौन पूछते? सच कहा आपने। आपकी कविता के भाव को आत्मसात् कर लेने में ही मनुष्य का हित है।
जवाब देंहटाएंकारीगर, मज़दूर न होते
जवाब देंहटाएंमहल-दुमहले कैसे बनते,
अल्पज्ञ, अज्ञानी यदि न हो
गुरुजनों को कौन पूछते !
बहुत ही उम्दा रचना
सुन्दर सृजन 🙏
जवाब देंहटाएंयहाँ न कोई कम या ज़्यादा
जवाब देंहटाएंआख़िर नर है न कि पैसा है,
न ऐसा न ही वैसा है, बस
हर कोई अपने जैसा है !..
सही कहा नर है पैसा नही जिसे कम या ज्यादा समझा जाय सब समान हैं।
बहुत ही लाजवाब सृजन।
जिज्ञासा जी, मनोज जी, जितेंद्र जी, अंकित जी, मनीषा जी व सुधा जी आप सभी का हृदय से स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसच है ... ये सब फर्क हमारे खुद के पैदा किये हुवे हैं और किस्मत के नाम पर फिर उसी को दोष देते हैं जिसने सबको एक सा बनाया है ...
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