नया दिन
मिलता है कोरे काग़ज़ सा
हर नया दिन
जिस पर इबारत लिखनी है
ज्यों किसी ख़ाली कैनवास पर
रंगों से अनदेखी आकृति भरनी है
धुल-पुंछ गयीं रात की बरसात में
मन की गालियाँ सारी
नए ख़्यालों की जिनसे
बारात गुजरनी है
हरेक दिन
एक अवसर बनकर मिला है
कई बार पहले भी
कमल बनकर खिला है
हो जाता है अस्त साथ दिनकर के
पुनः उसके उजास में
कली उर की खिलनी है
जीवन एक अनपढ़े उपन्यास की तरह
खुलता चला जाता है
कौन जाने किस नए पात्र से
कब मुलाक़ात करनी है
हर दिन कोई नया ख़्वाब बुनना है
हर दिन हक़ीक़त भी
अपनी राह से उतरनी है
अनंत सम्भावनाओं से भरा है जीवन
कौन जाने कब किसकी
क़िस्मत पलटनी है !
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 25 नवंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
बहुत बहुत आभार रवींद्र जी!
हटाएंजीवन सचमुच अनिश्चितताओं से भरा है, सच्चाई से रूबरू कराती सुंदर कृति ।
जवाब देंहटाएंसही कहा है आपने, स्वागत व आभार जिज्ञासा जी!
हटाएंवाह! बहुत बढ़िया...
जवाब देंहटाएंसुंदर सराहनीय सृजन,नये दिन से नई संभावनाएं।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंप्रकाश जी, कुसुम जी और ओंकार जी आप सभी का हृदय से स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंबिलकुल ठीक कहा आपने। मैंने जीवन को इसी रूप में अपना लिया है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ! देखा जाए तो जीवन अनिश्चितताओं से भरा पड़ा है या यूं कह लीजिए अनिश्चितताएं ही जीवन हैं !
जवाब देंहटाएंबस यही इक बात है की कल का कुछ पता नहीं चल पाता ... जीवन इसी उधेडबुन में निकल जाता है ...
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