रविवार, अप्रैल 6

मौन की गूँज

मौन की गूँज 


सन्नाटा बहता जाता है 

नीरवता छायी है भीतर, 

खामोशी सी पसर रही है 

गूंज मौन गूँजे रह-रह कर !


तृप्ति सहज  धारा उतरी ज्यों 

सारा आलम भीग रहा है, 

ज्योति स्तंभ का परस सुकोमल 

हर अभाव को पूर रहा है !


चाहत की फसलें जो बढ़तीं 

काटीं किसने कौन बो रहा, 

जगत का यह प्रपंच सुहाना 

युग-युग से अनवरत चल रहा !


9 टिप्‍पणियां:

  1. Sach mein! Jagat ka yeh prapanch, anavarat chal raha hai! :) Bahut sundar rachna!

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