कामना का अभाव
जैसे धुएँ से ढकी रहती है अग्नि
और धूल से दर्पण
वैसे ही ढक जाती है चेतना
कामना के आवरण से
उजागर नहीं होने देती सत्य
अनावृत मन ही हो जाता अनंत
हर कामना यदि अर्पित हो जाये
रिक्त अन्तर में विश्वास यह भर जाये
पल-पल कुशल-क्षेम कोई रखे ही जाता
तो हर बार वार अभाव का ख़ाली चला जाता
पूर्णता की तलाश हर अभाव को मिटाना है
मुक्त हो हर प्रभाव से, स्वभाव में आ जाना है !