सच क्या है
सच
सूक्ष्म है जो कहने में नहीं आता
सच
भाव है जो शब्दों में नहीं समाता
सच
एकांत है जहाँ दूसरा प्रवेश नहीं पाता
सच
सन्नाटा है जहाँ एक ‘तू’ ही गुंजाता
सच
में हुआ जा सकता है पर होने वाला नहीं बचता
सच
एक अहसास है जिससे इस जग का कोई मेल नहीं घटता
सच
बहुत कोमल है गुलाब से भी
सच
होकर भी नहीं होने जैसा है
सच
का राही चला जाता है अनंत की ओर
थामे
हुए हाथों में श्रद्धा की डोर !