आज चौथे दिन भी सुबह
हम जल्दी उठे और प्रातः भ्रमण के लिए गये. होटल से उतरकर
निचली सड़क पर दायीं ओर एक इमारत थी, जिसके चारों ओर कुछ महिलाएं हाथ में माला लिए
जप करती हुई परिक्रमा कर रही थीं. दीवार में समान दूरी पर झरोखे बने थे जिसमें
किसी देवी या देवता का चित्र लगा था. यहाँ पर लोगों को माला हाथ में लिए सड़क पर
चलते भी देखा जा सकता है. साढ़े आठ बजे 'पुनाखा' के लिए रवाना हुए. पौन घंटे बाद
'डेकुला पास' पहुंचे जो नौ हजार फीट की ऊँचाई पर स्थित है. यहाँ एक सौ आठ स्तूप
बनाये गये हैं जो दो हजार तीन में शहीद हुए सैनिकों की स्मृति में हैं. उस समय
भारत से आतंकवादी आकर यहाँ छिप गये थे, भारत सरकार के कहने पर भूटान की सेना ने
उन्हें देश से भागने पर मजबूर कर दिया था. इसी युद्ध में कितने ही भूटानी सैनिक
शहीद हो गये थे. हमारा अगला पड़ाव था फर्टिलिटी टेम्पल, जहाँ सन्तान की चाह व उनकी
रक्षा की कामना के लिए लोग आते हैं. बच्चों का नामकरण संस्कार भी वहीं किया जाता
है. डेढ़-दो किमी चढ़ाई के बाद हम पहाड़ पर स्थित मन्दिर में पहुँचे. इसके बाद बारी
थी 'पुनाखा फोर्ट' की, जहाँ काफी सीढ़ियाँ
चढ़ने के बाद हम किले के मुख्य द्वार पर पहुँचे. सामने ही भूटान का राष्ट्रीय ध्वज लहरा
रहा था तथा एक विशाल इमारत थी जिसके मध्य में एक विशाल स्तम्भ था. इमारत में दायीं
ओर के भाग में सरकारी कामकाज होता है तथा बायीं ओर धर्मगुरू तथा बौद्ध भिक्षु आदि
रहते हैं. भूटान में दोनों को समान आदर दिया जाता है. भूटान के संस्थापक गुरू
रिनपोचे का यहाँ बहुत सम्मान किया जाता है. गाइड से उनके बारे में कई बातें सुनीं,
यहाँ का इतिहास मिथकों से भरा हुआ है. शाम चार बजे हम होटल पहुंचे. पुनाखा में
हमारा होटल ज़िन्ग्खोम एक सुंदर रिजार्ट है, यहाँ स्पा भी है ध्यान कक्ष भी. एक
पहाड़ पर स्थित इस रिजॉर्ट में कमरे की बालकनी से भी किला दिखाई दे रहा था, जिसे
देखकर हम आये थे. निकट ही हाथी के आकार का एक पर्वत था जिसके दोनों ओर से दो
नदियाँ आकर किले के आगे कुछ दूर पर मिल जाती हैं. सूर्यास्त के समय किला व सामने
बहती नदी अत्यंत मनमोहक दृश्य का सृजन कर रहे थे. शाम को एक घंटा योग अभ्यास किया.
भोजन के समय बिजली चली गयी तो एक महिला कर्मचारी ने मोमबत्ती जला दी. डिनर अपने आप
ही कैंडल लाइट डिनर में तब्दील हो गया. तभी वर्षा भी होने लगी और वह बात भी पूरी
हो गयी कि भूटान में कभी भी वर्षा हो जाती है.
सुबह उठकर कुछ देर
टहलते रहे, एक हल्के भूरे रंग के बालों वाला झबरीला कुत्ता हमारे साथ-साथ चलने
लगा. योगाभ्यास के लिए ध्यान कक्ष में गये जो बिलकुल खाली पड़ा था. साढ़े नौ बजे हम
'पारो' के लिए निकल पड़े. डैकुला पास में पुन कुछ देर रुकर दोपहर डेढ़ बजे पारो के 'ले
मेरिडियन' होटल में आ गये, जहाँ श्वेत वस्त्र ओढ़ाकर हमारा पारंपरिक ढंग से स्वागत
किया गया, सेब और दालचीनी का स्वादिष्ट पेय भी दिया. कमरे की खिड़की से नदी दिखाई
देती है. बाहर बगीचे में एक स्तूप बना है. यहाँ फूलों की अनगिनत किस्में हैं.
गुलाबों के तो क्या कहने, हर रंग के गुलाब इस होटल के सामने वाले बगीचे में लगे
हैं. अभी दो रात्रियाँ हमें यहाँ बितानी हैं. भोजन परोसने वाले बैरे बहुत हंसमुख व
मेहमानों का आदर करने वाले हैं. कल 'टाइगर नेस्ट' जाना है, जिसके लिए चार किमी
चढ़ाई करनी है. सुबह आठ बजे निकलना होगा.
क्रमशः
क्रमशः
बहुत अच्छा लगा आपका भूटान यात्रावर्णन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 06.06.19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3358 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत बहुत आभार दिलबाग जी !
हटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन बच्चों का बचपना गुम न होने दें : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
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