आकाश कब बुलाये
भूली सी कोई याद
जाने कब से सोयी है
हर दिल की गहराई में
करती है लाख इशारे जिंदगी
किसी तरह वह याद
दिल की सतह पर आये
युग-युग से किया विस्मृत जिसे
बेवजह माया के हाथ पिसे
अब करे कोई क्या उपाय
कि बिछड़े उस प्रियतम की
याद आये...
और उसका विरह सताये
फिर देह भाव छूटे
पिंजर मन का टूटे
थे असीम से छूटे
सीमा अब न भाए
धरती यही सोचे
आकाश कब बुलाये !
सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुन्दर और सारगर्भित सृजन।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंये माया है ना जब से सफलता का प्रतीक बनी है
जवाब देंहटाएंतब से अनेक कहानियां बनाई है इसने।
पर सच है न कि एक याद में जिंदगी बसर करती है आज भी।
प्यारी रचना।
भावपूर्ण हृदय स्पर्श करती हुई।
स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
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