बिन मांगे, बिना किये मिला
धरा मिली आकाश भी मिला
जन्म-मृत्यु वरदान में मिला,
माता-पिता का दुलार मिला
सब कुछ तो हमको यहीं मिला !
शिक्षा पायी, संस्कार मिला
बचपन, तरुणाई सहज मिली,
खुद ही आयी प्रौढ़ावस्था
वृद्ध की फिर काया भी मिली !
क्षुधा जानी, तृष्णा भी मिली
आँसूं बहे, मुस्कानें मिली,
रिश्ते पनपे, परिवार मिला
क्या कहें अधिक स्वीकार मिला !
सब कुछ मिलता ही आया है
हमने अपनी मुहर लगाई,
अहंकार ही सदा बढ़ाया
सिर पर गठरी और चढ़ाई !
हो कृतज्ञ बस हल्का हो मन
शून्य से भरे तन का कण-कण,
जिसने श्वासों का दान दिया
उस अनंत का पावन सुमिरन !
सच है ... किसने दिया, जिसने दिया उसे देखा नहीं तो सोच लिया हमने पाया ...
जवाब देंहटाएंजब ये अहंकार मिटा तो जगत नज़र आया ... सत्य नज़र आया ...
बहुत भावपूर्ण ...
सही कहा आपने। उस परम शक्ति ने जो कुछ भी हमें दिया है,उसके लिये हमें कृतज्ञ होना ही चाहिए।
जवाब देंहटाएंहो कृतज्ञ बस हल्का हो मन
जवाब देंहटाएंशून्य से भरे तन का कण-कण,
जिसने श्वासों का दान दिया
उस अनंत का पावन सुमिरन !
सुन्दर रचना
सुंदर विचारो का अनूठा सृजन ।
जवाब देंहटाएंप्रभावी सुन्दर रचना !!
जवाब देंहटाएंबहुत अर्थपूर्ण रचना, बधाई.
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