गुरुवार, जून 3

बिन मांगे, बिना किये मिला

 बिन मांगे, बिना किये मिला 

धरा मिली आकाश भी मिला 

 जन्म-मृत्यु वरदान में मिला, 

माता-पिता का दुलार मिला 

सब कुछ तो हमको यहीं मिला !


शिक्षा पायी, संस्कार मिला 

बचपन, तरुणाई सहज मिली, 

खुद ही आयी प्रौढ़ावस्था 

वृद्ध की फिर काया भी मिली !


क्षुधा जानी, तृष्णा भी मिली 

आँसूं बहे, मुस्कानें मिली,

रिश्ते पनपे, परिवार मिला 

क्या कहें अधिक स्वीकार मिला !


सब कुछ मिलता ही आया है 

हमने अपनी मुहर लगाई, 

अहंकार ही सदा बढ़ाया 

सिर पर गठरी और चढ़ाई !


हो कृतज्ञ बस हल्का हो मन 

शून्य से भरे तन का कण-कण,

जिसने श्वासों का दान दिया  

उस अनंत का पावन सुमिरन ! 


6 टिप्‍पणियां:

  1. सच है ... किसने दिया, जिसने दिया उसे देखा नहीं तो सोच लिया हमने पाया ...
    जब ये अहंकार मिटा तो जगत नज़र आया ... सत्य नज़र आया ...
    बहुत भावपूर्ण ...

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  2. सही कहा आपने। उस परम शक्ति ने जो कुछ भी हमें दिया है,उसके लिये हमें कृतज्ञ होना ही चाहिए।

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  3. हो कृतज्ञ बस हल्का हो मन 

    शून्य से भरे तन का कण-कण,

    जिसने श्वासों का दान दिया  

    उस अनंत का पावन सुमिरन ! 

    सुन्दर रचना

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