शून्य का अर्थ
घुटनों पर नोटबुक कलम हाथ में
मानो कोरा काग़ज़ आमंत्रण दे
दिल से होते
कुछ बंध उतरे
मन व हाथों में यह कैसा नाता है
अंतर्जगत को जो पन्ने पर उकेर आता है
अमूर्त को मूर्त किया
शब्द का रूप दिया
उपजे थे चेतना से
कोई नहीं जिससे परे
अंतत: शून्य को ही
कलम पन्ने पर उतारती
लाख प्रयत्न करें पर
जिसे हम पढ़ नहीं पाते
क्या इसीलिए लोग कविता के
अपने-अपने अर्थ लगाते !
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(२२-१०-२०२१) को
'शून्य का अर्थ'(चर्चा अंक-४२२५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत बहुत आभार!
हटाएंजी सही कहा आपने !हम कहां सब पढ़ या समझ पाते हैं जो रचनाकार शून्य भावों को उकेरा है।
जवाब देंहटाएंसुंदर गहन रचना।
अत्यन्त सुन्दर लेख
जवाब देंहटाएंसुंदर चिंतन, मनन । सार्थक सृजन ।
जवाब देंहटाएंलाज़बाब रचना।
जवाब देंहटाएंजिज्ञासा जी व उर्मिला जी स्वागत व आभार!
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