रविवार, दिसंबर 4

लहरें और सागर



लहरें और सागर


लहर पोषित करती है स्वयं को 

सागर पूर्णकाम है 

लहार  चाह से भरी  है 

सागर  तृप्त  है

लहर दौड़ लगाती है 

शायद दिखाना चाहती है शौर्य तटों को 

सागर के सिवा कोई दूसरा नहीं 

दिखाए भी किसे 

लहर विशिष्ट है 

सागर निर्विशेष 

वह शुद्ध, बुद्ध 

मुक्त, तृप्त और आनंद स्वरूप है 

लहर की नज़र सदा अन्य पर रहती है 

सागर स्वयं में ठहरा है 

जब तक मिला नहीं सागर भीतर 

मन की लहर ही चलाती है 

सुख-दुःख झूले में झुलाती है 

सागर जुड़ा है अस्तित्व से 

लहर दूरियाँ बढ़ाती है 

सदा किसी तलाश में लगी 

कुछ न कुछ पाने की जुगत लगाती 

सागर में होना 

जगत नियंता के चरणों में बैठना है 

लहर से सागर की खोज एक यात्रा है 

 आनंद से भर  सकता है 

इस यात्रा का हर पल

यदि कोई लहर थम जाए 

और जान ले अपना सागर होना

 पल भर के लिए  !


8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बहुत आभार संगीता जी !

    जवाब देंहटाएं
  2. सागर में होना
    जगत नियंता के चरणों में बैठना है
    लहर से सागर की खोज एक यात्रा है
    बहुत सुन्दर कृति ।

    जवाब देंहटाएं
  3. हृदय में उठती लहरों का बहुत सुंदर चित्रण।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. मीना जी, कल्पना जी, मनोज जी व अनीता जी आप सभी का स्वागत व आभार!

    जवाब देंहटाएं
  5. सागर में होना

    जगत नियंता के चरणों में बैठना है

    लहर से सागर की खोज एक यात्रा है

    आनंद से भर सकता है

    इस यात्रा का हर पल

    यदि कोई लहर थम जाए

    और जान ले अपना सागर होना

    पल भर के लिए !
    लहर से सागर की खोज तक की यात्रा खुशनसीबी है लहर की।
    लाजवाब।

    जवाब देंहटाएं