लहरें और सागर
लहर पोषित करती है स्वयं को
सागर पूर्णकाम है
लहार चाह से भरी है
सागर तृप्त है
लहर दौड़ लगाती है
शायद दिखाना चाहती है शौर्य तटों को
सागर के सिवा कोई दूसरा नहीं
दिखाए भी किसे
लहर विशिष्ट है
सागर निर्विशेष
वह शुद्ध, बुद्ध
मुक्त, तृप्त और आनंद स्वरूप है
लहर की नज़र सदा अन्य पर रहती है
सागर स्वयं में ठहरा है
जब तक मिला नहीं सागर भीतर
मन की लहर ही चलाती है
सुख-दुःख झूले में झुलाती है
सागर जुड़ा है अस्तित्व से
लहर दूरियाँ बढ़ाती है
सदा किसी तलाश में लगी
कुछ न कुछ पाने की जुगत लगाती
सागर में होना
जगत नियंता के चरणों में बैठना है
लहर से सागर की खोज एक यात्रा है
आनंद से भर सकता है
इस यात्रा का हर पल
यदि कोई लहर थम जाए
और जान ले अपना सागर होना
पल भर के लिए !
बहुत बहुत आभार संगीता जी !
जवाब देंहटाएंसागर में होना
जवाब देंहटाएंजगत नियंता के चरणों में बैठना है
लहर से सागर की खोज एक यात्रा है
बहुत सुन्दर कृति ।
प्राकृतिक स्पंदन की रचना , बधाई
जवाब देंहटाएंअप्रतिम सृजन
जवाब देंहटाएंहृदय में उठती लहरों का बहुत सुंदर चित्रण।
जवाब देंहटाएंसादर
मीना जी, कल्पना जी, मनोज जी व अनीता जी आप सभी का स्वागत व आभार!
जवाब देंहटाएंसागर में होना
जवाब देंहटाएंजगत नियंता के चरणों में बैठना है
लहर से सागर की खोज एक यात्रा है
आनंद से भर सकता है
इस यात्रा का हर पल
यदि कोई लहर थम जाए
और जान ले अपना सागर होना
पल भर के लिए !
लहर से सागर की खोज तक की यात्रा खुशनसीबी है लहर की।
लाजवाब।
स्वागत व आभार सुधा जी !
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