क्योंकि तुम ख़ुशी के परमाणुओं से बने हो
जिसमें प्रेम के परमाणु भी हैं
या वे बदल जाते हैं प्रेम में
कई आयामी हैं वे
जैसे प्रकाश की एक श्वेत किरण
सात रंगों में टूट जाती है
प्रिज्म से गुजरने पर
आत्मज्योति में भी सात गुण छिपे हैं
कभी प्रेम का लाल रंग
मुखर हो उठता है चिदाकाश में
जब भावनाओं के श्वेत निर्मल मेघ
उमड़ते घुमड़ते हैं
कभी शांति का नीलवर्ण
शक्ति का केसरिया भी है यहाँ
और ज्ञान का पीतवर्ण भी
शुद्धता का बैंगनी रंग कितना मोहक है
सुख की हरि फसल भी लहलहाती है
अंतर आकाश सुशोभित है
इन सात रंगों से
जहाँ से सात सुरों की गूंज भी आती है !