गीत जागरण का जो गाए
सच की नाव गुरू खेवटिया
मीरा ने यह गीत सुनाया,
जो समर्थ वह पार उतारे
मन यह भेद समझ कब पाया !
डूबा जाए भवसागर में
लहरों के आँदोलन में घिर,
उहापोह, उलझन इस उस की
राज न सीखा हो कैसे थिर !
सुख-दुःख बादल आ ढक लेते
ज्ञान सूर्य जो भीतर चमके,
अंधकार ही जाना उसने
तम की रात घिरी है कब से !
गीत जागरण का जो गाया
वही प्रीत का सामवेद है,
सत्य मशाल जले जब भीतर
शेष नहीं तिलमात्र खेद है !
झर जाता विषाद जीवन से
अविरत स्नेह बरसता जाए,
जागे शक्ति सुप्त अंतर की
करुणा औ' उल्लास जगाए !
गीत जागरण का जो गाया
जवाब देंहटाएंवही प्रीत का सामवेद है,
सत्य मशाल जले जब भीतर
शेष नहीं तिलमात्र खेद है !
अद्भुत पंक्तियाँ। जागृति के गीत ही परमेश्वर से प्रीति का सामवेद बन जाते हैं। जब सत्य से साक्षात्कार होता है तो मन हर परिस्थिती में आनंदमग्न रहना सीख जाता है।
कविता के मर्म को ग्रहण कर सुंदर प्रतिक्रिया हेतु स्वागत व आभार मीना जी !
हटाएंसुंदर पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी!
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