सोमवार, सितंबर 16

कल की बातें रहने ही दो

कल की बातें रहने ही दो 

जिसमें ठहरा जा सकता है 

वह केवल यह पल है मितवा, 

कल की बातें रहने ही दो 

कल किसने देखा है मितवा !


आगा-पीछा सोच-सोच के 

मन के हाल बुरे कर आये,  

शगुन-अपशगुन के फेरे में 

मोती से कई दिन गँवाये ! 


मन का क्या है, आज चाहता 

कल उसको ख़ारिज कर देता, 

छोड़ो इसकी चाहत, ख्वाहिश 

हर पल का तुम रस पी लेना !


चिड़िया, बादल, दूब, पवन पर 

स्नेह भरी एक दृष्टि डालो,  

कैसे हो जाता है अपना 

जग को अपना मीत बना लो !



8 टिप्‍पणियां:

  1. सकारात्मक भावों से सजी बहुत सुंदर अभिव्यक्ति । जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि यही तो एकमात्र सत्य है न।
    सस्नेह
    सादर।
    ----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १७ सितम्बर २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. वाह ! कितनी मीठी, सरल और प्यारी रचना है! जग को ऐसी कविताएँ और चाहिए! दोस्तों के साथ सांझी करने लायक कविता है यह!

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    1. सुंदर सकारात्मक प्रतिक्रिया हेतु आभार !

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