बड़े दिन की कविता
ईसा ने कहा था
चट्टान पर घर बनाओ
रेत पर नहीं
क्या ‘मन’ ही हमारा असली घर नहीं
क्या हर कोई मन में नहीं रहता
आपस में जुड़े हैं मन
मन वस्तुओं से जुड़ा है
या कहें दुनिया से जुड़ा है
देखें यह घर किस पर टिका है
रिश्तों का आधार क्या है
आधार चट्टान सा मज़बूत हो
वह प्यार हो
जो अटल है, अमर है और अनंत भी
न कि मोह
जो रेत सा अस्थिर है डांवाडोल है
मोह बाँधता है, जकड़ता है
वरना तो टिकेगा कैसे
प्रेम मुक्त करता है, पंख देता है
ईसा ने कहा था
ईश्वर प्रेम है !
रिश्तों का आधार ईश्वर हो तो
किसी बात से न डिगेगा
तब हर दिन बड़ा दिन मनेगा !
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 26 दिसंबर 2024 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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बहुत बहुत आभार रवींद्र जी !
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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