आया मार्च
आया मार्च ! हरी आभा ले
वृक्षों ने नव पल्लव धारे,
धानी चमकीले रंगों से
तरुवर ने निज गात सँवारे !
आया मार्च ! अरुण आभा ले
फूला पलाश वन प्रांतर में,
चटक शोख़ रक्तिम पल्लव से
डाली-डाली सजी वृक्ष में !
आया मार्च ! मौसम रंगीन
फागुन की आहट कण-कण में,
बैंगनी फूलों वाला पेड़
बस जाता मन में नयनों से !
आया मार्च ! महक अमराई
छोटी-छोटी अमियाँ फूटीं,
भँवरे डोला करें बौर पर
दूर नहीं रस भरे आम भी !
आया मार्च ! कहीं बढ़ा ताप
कहीं अभी भी शीत व्यापता,
कुदरत की लीला पर मानव
चकित हुआ सा रहे भाँपता !