सोमवार, मार्च 10

आया मार्च

आया मार्च 


आया मार्च ! हरी आभा ले

वृक्षों ने नव पल्लव धारे, 

धानी चमकीले रंगों से 

तरुवर ने निज गात सँवारे !


आया मार्च ! अरुण आभा ले 

फूला पलाश वन प्रांतर में, 

चटक शोख़ रक्तिम पल्लव से 

डाली-डाली सजी वृक्ष में !


आया मार्च ! मौसम रंगीन 

फागुन की आहट कण-कण में, 

बैंगनी फूलों वाला पेड़ 

बस जाता मन में नयनों से !


आया मार्च ! महक अमराई 

छोटी-छोटी अमियाँ फूटीं, 

भँवरे डोला करें बौर पर 

दूर नहीं रस भरे आम भी !


आया मार्च ! कहीं बढ़ा  ताप 

कहीं अभी भी शीत व्यापता, 

कुदरत  की लीला पर मानव 

चकित हुआ सा रहे भाँपता !



शुक्रवार, मार्च 7

इतना ही तो कृत्य शेष है

इतना ही तो कृत्य शेष है


‘मैं’ बनकर जो मुझमें बसता 

‘तू’ बनकर तुझमें वह सजता, 

मेघा बन नभ में रहता जो, 

धारा बन नदिया में बहता !


चुन शब्दों को गीत बनाना 

अपनी धुन में उसे बिठाना, 

इतना ही तो कृत्य शेष है 

सुनना तुमको और सुनाना !


अब न कोई सीमा रोके 

नील गगन में किया ठिकाना, 

खुला द्वार, है खुला झरोखा 

सहज हो रहा आना जाना !


बुधवार, मार्च 5

हमको हमसे मिलाये जाता है


 हमको हमसे मिलाये जाता है 

हर शुबहे को गिराए जाता है 

वह हर इक पल उठाये जाता है 


खुदी को सौंप कर जिस घड़ी देखा 

वह ख़ुद जैसा बनाये जाता है 


न दूरी न कोई भेद है उससे 

 हमको हमसे मिलाये जाता है 


 चाह जब घेरने लगती हृदय को 

 भँवर से दूर छुड़ाए जाता है 


घेरा हवा औ' धूप की मानिंद

ज्यों आँचल में छुपाये जाता है 


 हो रहो उसके महफ़ूज़ रहोगे 

 सबक़ यह रोज़ सिखाये जाता है  


रविवार, मार्च 2

अब बहुत हुआ लुकना-छिपना


अब बहुत हुआ लुकना-छिपना

कब अपना घूंघट खोलेगा 
कब हमसे भी तू बोलेगा, 
राधा का तू मीरा का भी 
कब अपने सँग भी डोलेगा! 

अपना राज छिपा क्यों रखता 
क्यों रस तेरा मन ना चखता, 
जब तू ही तू है सभी जगह 
इन नयनों को क्यों ना दिखता! 

अब और नहीं धीरज बँधता
मुँह मोड़ भला क्यों तू हँसता, 
अब बहुत हुआ लुकना-छिपना  
तुझ बिन ना अब यह दिल रमता! 

जो तू है, सो मैं हूँ, सच है 
पर मुझको अपनी खबर कहाँ, 
अब तू ही तू दिखता हर सूं 
जाती है अपनी नजर जहाँ ! 

यह कैसा खेल चला आता 
तू झलक दिखा छुप जाता है, 
पलकों में बंद करूं कैसे 
रह-रह कर बस छल जाता है !