बादलों के पार
उठे धरा से छूने अम्बर
मेघपुंज के पार आ गए
छूटी पीछे दो की दुनिया
इक का ही आधार पा गए I
दूर कहीं है गंध धरा की
स्वर्णिम क्षण यह दृश्य अनोखा
ढका गया बादल से हर कण
दिखे कहीं न कोई झरोखा I
निर्मल नीले नभ की छाया
श्वेत मेघ तिरते झलकाते
मानो बिखरी शुभ्रा कपास
या उड़तीं बगुलों की पातें I
हिमाच्छादित पर्वत माला
ज्यों मीलों दूर चली जाती
श्वेत बादलों की यह शैया
परीलोक की याद दिलाती I
बहुत ही सुन्दर रचना है !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार नीलेश जी!
हटाएंप्रकृति के मनोरम दृश्यों को साकार करती सुन्दर कृति । रंगोत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ अनीता जी !
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार मीना जी!
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जवाब देंहटाएंउठे धरा से छूने अम्बर
मेघपुंज के पार आ गए
छूटी पीछे दो की दुनिया
इक का ही आधार पा गए I
... जीवन मधुरास से मिठास घोलती सुंदर अनुपम रचना।
होली की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 💐💐🖍️🖍️
आपको भी होली की शुभकामनाएँ!
हटाएंसुंदर प्रकृति चित्रण भाव प्रवण सृजन।
जवाब देंहटाएंहोली पर हार्दिक शुभकामनाएं 🌷
आभार व शुभकामनाएँ कुसुम जी!
हटाएंदूर कहीं है गंध धरा की
जवाब देंहटाएंस्वर्णिम क्षण यह दृश्य अनोखा
ढका गया बादल से हर कण
दिखे कहीं न कोई झरोखा
वाह!!!
अप्रतिम सृजन ।
स्वागत व आभार सुधा जी!
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जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सृजन अनीता जी,होली की हार्दिक शुभकामनायें आपको
आपको भी होली की शुभकामनाएँ!
हटाएंबहुत ही सुन्दर आपका लेख है आप हमारा लेख इनकम टैक्स रिटर्न क्या होता है? | Income Tax Return kya hota hai? भी पढ़ सकते है
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार, यह लेख नहीं है
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंआहा, महादेवी वर्मा की याद दिला गया आपका गीत. वैसी माधुर्य, भाषा का सौष्ठव और वैसा ही रहस्यवाद.. नत हूं इस सृजन के आगे.
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