क्यों शिला बन गया मन
स्रोत भीतर प्रेम का है
क्यों शिला बन गया मन
प्रीत की धारा छुपी है
मीत क्यों न बने जीवन
सामने मधुकलश खोले
राह फूलों की सजी है
दो कदम के फासले पर
बिछी कोमल चान्दनी है
किन्तु तुम कैसे अभागे
कैद बैठे कन्दरा में
कंटको से घेर आंगन
तृषित रोते हो व्यथा में
बांह फैला रागिनी भी
व्यक्त होने को है व्याकुल
रोशनी का महासागर
प्रज्वलित होने को आकुल
तोड़ झूठी श्रृंखलाएं
प्रेम सरि का बांध तोड़ो
मुक्त हो मुस्कान बांटो
नेह निज से नित्य जोड़ो
अनिता निहालानी
२९ जुलाई २०१०
तोड़ झूठी श्रृंखलाएं
जवाब देंहटाएंप्रेम सरि का बांध तोड़ो
मुक्त हो मुस्कान बांटो
नेह निज से नित्य जोड़ो
!क्या खूब कहा है ,,,,
वाह !!! अत्यंत सुन्दर रचना ,,,,,लाजवाब
शोभनम्
जवाब देंहटाएंधन्यवाद एवं आभार!
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