पंद्रह अगस्त
ओ मेरे देश !
भर आयी है आँख, द्रवित अंतर
भीगा है अंचल तेरा
रिस रहे हैं घाव
टप-टप बहता है रक्त
कैसे कहूँ, मुबारक जश्ने आजादी !
उत्तर है घायल
दक्षिण बेकल, पश्चिम रहा किसी तरह सम्भल
पूर्व में आग लगी
फिर भी इस देश के हर उस
सजग इंसान के भीतर आस जगी
जिसने गाये हैं तराने,
समोयी है इस माटी की गंध
फ़िदा है जो तेरे हर रूप पर !
ओ मेरे देश !
साया आतंक का हो चाहे कितना गहरा
तेरा सूरज उसे लील जायेगा
न मंसूबे गैरों के, न तांडव भ्रष्टाचार का
तेरे परचम को लहराने से रोक पायेगा
मनेगी आजादी की सालगिरह !
क्या हुआ जो छलक आये अश्रु
मुस्काते हैं लब अब भी
देख के झूमती हुई फसलों को
नाचते हैं लोग अब भी
नई नस्ल दौड़ी आती है तेरा ध्वज लिये
नहीं बुजदिल, दिलों में तेरी मुहब्बत लिये !
अनिता निहालानी
१३ अगस्त २०१०
कमाल कि पंक्तियाँ है, बहुत खूबसूरत रचना!
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