तुम हर पल हमें बुलाते हो !
जग से जिस पल खाया धोखा
जब जब दिल ने खायी ठोकर,
तुम ही तो पीड़ा बन मिलते
झलक सत्य की दिखलाते हो !
जिनको माना हमने अपना
निकले झूठे वे सब सपने,
आधार बनाया था जिनको
छल करना उन्हें सिखाते हो !
पीड़ा भी तुम वरदान तुम्हीं
सब जाल बिछाया है तुमने,
जीवन का भेद खोलने को
वैराग्य पाठ पढ़ाते हो !
भीतर जो दर्द उठा गहरा
वह आशा से ही उपजा था,
टूटे आशा की डोर तभी
तुम ऐसे खेल रचाते हो !
अनिता निहालानी
१४ सितम्बर २०१०
बेहतरीन भावों की अभिव्यकत्ति...
जवाब देंहटाएंupendra ( www.srijanshikhar.blogspot.com )
सुन्दर भाव |
जवाब देंहटाएंहिंदी दिवस की शुभकामना
धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं