बुधवार, नवंबर 17

अकुलाहट

अकुलाहट

उस चाहत की चाहत की है

जो अंतर को बेसुध कर दे,

कुछ कहने, कुछ भी मत कहने

दोनों का हर अंतर भर दे !


इक बेचैनी माँगी उर ने

जो भीतर तक भरती जाये,

वह सब जो आतुर आने को

निर्बाधा बाहर आ जाये !


इक बेआरामी सी हर पल

इस दिल में सुगबुग करती हो,

आकुल रीते अंतर्मन का

थोड़ा खालीपन भरती हो !


इक अकुलाहट हो प्राणों में

गहरी प्यास हृदय में जागे,

सीधे सपाट उर मरुथल में

फिर चंचल हरिणी सी भागे !



अनिता निहालानी
१७ नवम्बर २०१०   


5 टिप्‍पणियां:

  1. ऐसी प्यारी कविता तो रोज़ पढ़ने का मन करेगा ...
    मज़ा आ गया....

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  2. आपकी कविता हमेशा अपकी पहचान होती है...बहुत ही सादगी से बहुत ही गहरा संदेश देती यह रचना..

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  3. ......ट्रेफिक जाम के लिए.... ज़िम्मेदार कौन ?
    नई पोस्ट पर आपका स्वागत है

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  4. अनीता जी,

    हमेशा की तरह बेहद सुन्दर कविता.....ये पंक्तियाँ बहुत पसंद आईं -

    "इक दर्द की चाहत की है
    जो मन को बेसुध कर दे,
    कुछ कहने, कुछ न कहने
    दोनों का अंतर भर दे !"

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