कुछ इधर की कुछ उधर की
लोकतंत्र
लोकतंत्र का हुजूर असल अर्थ है यही
लोग अपने हों यदि, तन्त्र अपना हो गया !
जान पहचान के हैं हजार फायदे
अर्जियां धरी रहीं, यूँ ही काम हो गया !
दे दिला दिया उन्हें चाय-पानी वास्ते
हफ्ते भर से था खराब, फोन ठीक हो गया !
एब्स्ट्रैक्ट आर्ट
निकले जो सर के ऊपर महान है वह रचना
हैरान करके छोड़े, आलीशान है वह रचना !
जो उलटी है या सीधी पहचानना हो मुश्किल
इंसान या गधे की, यह जानना हो मुश्किल !
वह कलाकृति अमर है जो हो परे अकल से
लाखों में वह बिकेगी, टेढ़ी हो जो शकल से !
अनिता निहालानी
२ फरवरी २०११
aise hi duniya chalti hai...chai pani pe bhi kaam ho jata hai..:)
जवाब देंहटाएंbahut khub!
अनीता जी,
जवाब देंहटाएंआप वाकई एक सम्पूर्ण रचनाकार है......हास्य में लिपटा करार व्यंग्य......बहुत खूब.....आर्ट वाला तो बहुत ही बढ़िया है.........बहुत खूब|