ऐसा है आदमी
खुद के बनाये जाल में जकड़ा है आदमी
वरना तो चाँद छू के आया है आदमी !
मंजिल की खोज में तो निकला था कारवां
मुड़ के जो राह देखी तनहा था आदमी !
मकसद सभी का साझा जन्नत बने ये दुनिया
फिर क्यों दीवारें दिल में चुनता है आदमी !
सुबह से शाम तक जो कसमें खुदा की खाए
अनजान ही खुदा से रहता है आदमी !
अनिता निहालानी
२४ फरवरी २०११
मकसद सभी का साझा जन्नत बने ये दुनिया
जवाब देंहटाएंफिर क्यों दीवारें दिल में चुनता है आदमी !
बहुत सार्थक और प्रेरक रचना..
मकसद सभी का साझा जन्नत बने ये दुनिया फिर क्यों दीवारें दिल में चुनता है आदमी !
जवाब देंहटाएंबहुत प्रेरणा देती हुई सुन्दर रचना ...
सुबह से शाम तक जो कसमें खुदा की खाए अनजान ही खुदा से रहता है आदमी !
जवाब देंहटाएंसभी पंक्तियाँ बहुत ही अच्छी हैं !