खोना ही असली पाना है
जाने कितने दीप जलाये
जाने कितने पुष्प चढ़ाये
आतुर अंतर को समझाने
मोती से अश्रु बिखराए !
धूल भरी राहों को नापा
भयावह जंगल भी पाए
मनचाही मंजिल को पाने
शूलों से भी पग बिंधवाये !
किन्तु मिटी न चाहत उर की
मंजिल भी पीछे तज आये
रीता मन रीते कर बांधे
खुद से मिलकर भी घबराए !
त्याज्य हुईं तृष्णाएं जिस क्षण
अंतर में उपवन उग आये
खोना ही असली पाना है
जीवन पग पग पाठ पढ़ाये !
अनिता निहालानी
९ अप्रैल २०११
बहुत अच्छी और सन्देश देती सुन्दर रचना ..
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा ज्ञान बढाती प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंअनीता जी,
जवाब देंहटाएंशानदार.....खोना ही असली पाना है .....अमृत वचन है ये .....सब कुछ छुपा है इस छोटी सी बात में......बहुत सुन्दर |
ek ek shabd amoolya moti sa -
जवाब देंहटाएंgyanvardhak rachna .
अनीता जी ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस रचना को खुद के बहुत करीब पाती हूँ.. स्वयं की और लौट आने का वर्णन करती हुई यह रचना बहुत सुन्दर है
कल 26/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
aapko padhna bahut acchha lagta hai... har baar...
जवाब देंहटाएंत्याज्य हुईं तृष्णाएं जिस क्षण
अंतर में उपवन उग आये
खोना ही असली पाना है
जीवन पग पग पाठ पढ़ाये !
best lines... :)