शनिवार, अप्रैल 9

खोना ही असली पाना है

खोना ही असली पाना है

जाने कितने दीप जलाये
जाने कितने पुष्प चढ़ाये
आतुर अंतर को समझाने
मोती से अश्रु बिखराए !

धूल भरी राहों को नापा
भयावह जंगल भी पाए
मनचाही मंजिल को पाने
शूलों से भी पग बिंधवाये !

किन्तु मिटी न चाहत उर की
मंजिल भी पीछे तज आये
रीता मन रीते कर बांधे
खुद से मिलकर भी घबराए !

त्याज्य हुईं तृष्णाएं जिस क्षण
अंतर में उपवन उग आये
खोना ही असली पाना है
जीवन पग पग पाठ पढ़ाये !

अनिता निहालानी
९ अप्रैल २०११  




7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी और सन्देश देती सुन्दर रचना ..

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  2. बेहद उम्दा ज्ञान बढाती प्रस्तुति।

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  3. अनीता जी,

    शानदार.....खोना ही असली पाना है .....अमृत वचन है ये .....सब कुछ छुपा है इस छोटी सी बात में......बहुत सुन्दर |

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  4. अनीता जी ,

    आपकी इस रचना को खुद के बहुत करीब पाती हूँ.. स्वयं की और लौट आने का वर्णन करती हुई यह रचना बहुत सुन्दर है

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  5. कल 26/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  6. aapko padhna bahut acchha lagta hai... har baar...
    त्याज्य हुईं तृष्णाएं जिस क्षण
    अंतर में उपवन उग आये
    खोना ही असली पाना है
    जीवन पग पग पाठ पढ़ाये !
    best lines... :)

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