अम्बर से जब बूँदें आतीं
बरस रहीं हैं झर-झर बूँदें
बरस रहा है अमि नभ घट से,
चक्र सृष्टि का, चक्र वृष्टि का
जाने कौन? चलाया किसने?
सागर से जन्मी जो बदली
गर्भित हुई स्वयं मृदु जल से,
बरस पर्वतों पर शुभ धारा
चली नदी पुनः सागर होने !
टप टप टप टप शोर मचातीं
तड़ तड़ तड़ तड़ धार बहातीं,
इसे भिगोतीं उसे भिगोतीं
पंछी फूल सभी हर्षातीं !
कण-कण वसुधा का महकातीं
अम्बर से जब बूँदें आतीं,
पाट दरारें समतल करती
शीतलता पा भूमि सरसती !
मानो कोई नृत्य उमगता
नभ से जब जलधार फूटती,
वसुंधरा ज्यों बांह पसारे
अम्बर को अंतर में धरती !
वर्षा वारिद सिंचित करता
पोर-पोर भूमि का हुलसता,
झोली भर भर धान्य लुटाता
फूल-फलों से जग भर देता !
मुखरित होते गान अनोखे
चातक, मोर, पपीहा, दादुर,
कहीं कूकती श्यामा कोकिल
मधुर कूजती मैना, बुलबुल !
पत्ते नाचें, पुष्प विहँसता
धुला-धुला घर-आंगन लगता,
संग भीगता हँसता बालक
छप-छप कर तन मन हर्षाता !
जंगल-जंगल वृक्ष झूमते
उपवन-उपवन पुष्प नाचते,
गांव-गांव में उत्सव मनता
शहर-शहर में छाते तनते !
अनिता निहालानी
२० अप्रैल २०११
bahut achcha likhi hain aap.
जवाब देंहटाएंवर्षा का मनोरम दृश्य प्रस्तुत कर दिया ....सुन्दर रचा है यह सृष्टि चक्र
जवाब देंहटाएंमनमोहक प्रकृति चित्रण ....सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंअनीता जी,
जवाब देंहटाएंजैसे सावन की भीगी रूत ने भिगो दिया हो और पहली बारिश के बाद मिट्टी की सोंधी खूशबू भर गयी हो नासापुटों में......... ऐसा ही कुछ अनुभव हुआ इस पोस्ट से......बहुत सुन्दर|
वो तो बारिश की पहली बूंद ही है जो मिट्टी की सौंधी महक दे जाती है...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना...
वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर जीवंत कृति ....!
जवाब देंहटाएंसजीव सुंदर वर्षा का वर्णन ..!!
पत्ते नाचें, पुष्प विहँसता
जवाब देंहटाएंधुला धुला घर-आंगन लगता
संग भीगता बालक नन्हा
छप छप कर तन मन हर्षाता !
अनीता जी आपने तो अभी से ही सावन का माहौल बना दिया. लगता है असम में वारिश की महक फ़ैल चुकी है. बहुत उम्दा रचना. बधाई.
आप सभी का आभार ! जी हाँ, असम में बारिश का आगमन हो चुका है
जवाब देंहटाएंपर मन को तो विश्राम ही नही है क्या करू
जवाब देंहटाएंपत्ते नाचें, पुष्प विहँसता
धुला धुला घर-आंगन लगता
संग भीगता बालक नन्हा
बहुत ही बढ़िया
आलोक जी, आज की इस भागती-दौड़ती दुनिया में मन के विश्राम के लिये ध्यान करना बहुत जरूरी है.
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