मंगलवार, मई 3

आज खिले कल मुरझाएंगे



आज खिले कल मुरझाएंगे

पल-पल हाँ से नहीं हो रहे
छिन-छिन हम तुम शेष हो रहे,
चुक जाना है नियति अपनी
थम जायेगी गति जीवन की !

काल सिंधु में बहे जा रहे
तिल-तिल घटना सहे जा रहे,
आज खिले कल मुरझाएंगे
गंध पवन को दे जायेंगे !

इक-इक कर वह चुने जा रहे
मृत्यु माल में गुंथे जा रहे,
स्वप्न सरीखा था जो बीता
कितना भरा रहा मन रीता !

रीते मन के साथ जी रहे
नश्वरता के घूंट पी रहे,
पल-पल हाँ से नहीं हो रहे
छिन-छिन हम तुम शेष हो रहे !

अनिता निहालानी
३ मई २०११    

8 टिप्‍पणियां:

  1. विरक्ति का भाव और एक सत्य का वर्णन ।

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  2. जीवन के सच से सार से जुडी -अति गहन अभिव्यक्ति |
    बहुत सुंदर रचना .बधाई .

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  3. पल-पल हाँ से नहीं हो रहे
    छिन-छिन हम तुम शेष हो रहे ।

    गूढ भावों को दर्शाती उम्दा रचना...

    क्या हिन्दी चिट्ठाकार अंग्रेजी में स्वयं को ज्यादा सहज महसूस कर रहे हैं ?

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  4. फूलों के माध्यम से गहन दर्शन की अभिव्यक्ति की है आपने......अति सुन्दर|

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  5. गहन अभिव्यक्ति गूढ भावों को दर्शाती ..सुन्दर

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  6. इक-इक कर वह चुने जा रहे
    मृत्यु माल में गुंथे जा रहे,
    स्वप्न सरीखा था जो बीता
    कितना भरा रहा मन रीता !

    भावनाओ की कोमल अभिव्यक्ति.
    बहुत सुंदर रचना .बधाई.

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