आज खिले कल मुरझाएंगे
पल-पल हाँ से नहीं हो रहे 
छिन-छिन हम तुम शेष हो रहे, 
चुक जाना है नियति अपनी 
थम जायेगी गति जीवन की !
काल सिंधु में बहे जा रहे 
तिल-तिल घटना सहे जा रहे, 
आज खिले कल मुरझाएंगे
गंध पवन को दे जायेंगे ! 
इक-इक कर वह चुने जा रहे 
मृत्यु माल में गुंथे जा रहे, 
स्वप्न सरीखा था जो बीता 
कितना भरा रहा मन रीता ! 
रीते मन के साथ जी रहे 
नश्वरता के घूंट पी रहे, 
पल-पल हाँ से नहीं हो रहे 
छिन-छिन हम तुम शेष हो रहे ! 
अनिता निहालानी 
३ मई २०११    
सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंविरक्ति का भाव और एक सत्य का वर्णन ।
जवाब देंहटाएंजीवन के सच से सार से जुडी -अति गहन अभिव्यक्ति |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना .बधाई .
पल-पल हाँ से नहीं हो रहे
जवाब देंहटाएंछिन-छिन हम तुम शेष हो रहे ।
गूढ भावों को दर्शाती उम्दा रचना...
क्या हिन्दी चिट्ठाकार अंग्रेजी में स्वयं को ज्यादा सहज महसूस कर रहे हैं ?
फूलों के माध्यम से गहन दर्शन की अभिव्यक्ति की है आपने......अति सुन्दर|
जवाब देंहटाएंगहन अभिव्यक्ति गूढ भावों को दर्शाती ..सुन्दर
जवाब देंहटाएंइक-इक कर वह चुने जा रहे
जवाब देंहटाएंमृत्यु माल में गुंथे जा रहे,
स्वप्न सरीखा था जो बीता
कितना भरा रहा मन रीता !
भावनाओ की कोमल अभिव्यक्ति.
बहुत सुंदर रचना .बधाई.
सुन्दर...
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