सब संगीत बहा जाता है
स्रोत शांति का यदि भीतर है
सारा जग अपना लगता है,
जो है जिसके पास, जगत !
वह, वही तुम्हें दे सकता है I
भीतर यदि मुस्कान भरी है
हँस सकता है संग सहर के,
फूलों के सँग बढा दोस्ती
चिड़ियों के सँग गा सकता है !
सभी सुखी हों और स्वस्थ भी
आनन्दित हो जाएँ सब ही,
सहज लुटाता ममता सारी
सेवा भाव जगा करता है !
लेकिन भीतर हो सन्नाटा
कुछ भी नजर कहाँ आता है,
जीवन की आपाधापी में
सब संगीत बहा जाता है !
तन पीड़ित हो, इंद्रधनुष भी
मन को भला नहीं लगता,
मन आकुल हो चाँद पूर्णिमा
का भी सुख न दे पाता है !
लोभ भरा हो अंतर में तो
दुखी नजर कहाँ आते हैं,
भूखे-प्यासे बच्चे भी तब
नजर अंदाज किये जाते हैं !
भरी तिजोरी रहे सलामत
दुआ यही निकलती दिल से,
अपनों से भी खींचातानी
दान कहाँ दिया जाता है !
चुक गयी संवेदनायें जिसकी
वह दिल कब खिल पाता है,
जीवन की आपाधापी में
सब संगीत बहा जाता है !
अनिता निहालानी
१६ मई २०११
बहुत सुन्दर भाव रचना के ...सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार
जवाब देंहटाएंचुक गयी संवेदनायें जिसकी
जवाब देंहटाएंवह दिल कब खिल पाता है,
जीवन की आपाधापी में
सब संगीत बहा जाता है !
बहुत ही मनमोहक कविता.
सादर
अनीता जी,
जवाब देंहटाएंहैट्स ऑफ इस पोस्ट के लिए.......भीतर और बाहर का अभूतपूर्व मिश्रण.......शानदार |
इस कविता ने एक पुरानी कहावत याद दिला दी कि यह संसार तो दर्पण है,हम मुस्कराते हें तो यह भी मुस्कराता है ,हम गुस्सा करते हैं तो यह भी गुस्सा करता है.
जवाब देंहटाएंआनंद आ गया ...सरलता से मन मुग्ध हो गया !.
जवाब देंहटाएं:-)
शुभकामनायें आपको !
संगीताजी, यशवंतजी, इमरान जी, दीदी और सतीश जी, आप सभी का दिल से आभार !
जवाब देंहटाएंभीतर यदि मुस्कान भरी है
जवाब देंहटाएंहँस सकता है संग सहर के,
फूलों के सँग बढा दोस्ती
चिड़ियों के सँग गा सकता है.....behad khoobsurat likhi hain.
कितना आनंद बिखेर देती हैं आप ..कितना आभार प्रकट करूँ ?
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