संध्या राग
मसूर की दाल के से
गुलाबी बार्डर वाले
सुरमई बादल
मानो संध्या ने पहनी हो नई साड़ी
कुहू-कुहू की तान गुंजाती ध्वनि
और यह मंद पवन
जाने किस-किस बगिया के
फूलों की गंध लिये
आती है,
ऐसे में लिखी गयी यह पाती
किसके नाम है
क्या तुम नहीं जानते ?
तुम जो भर जाते हो अन्जानी सी पुलक
शिराओं में सिहरन और उर में एक कसक
विरह और मिलन एक साथ घटित होते हैं जैसे
आकाश में एक ओर ढलता है सूरज
तो दूसरी ओर उगता है चाँद !
हरीतिमा में झांकता है तुम्हारा ही अक्स
हे ईश्वर !या तो तुम हो.. या तुम्हारी याद.....
अनिता निहालानी
२५ मई २०११
prakriti ka bahut sundar varnan kiya hai anita ji aapke man ke bhav shabdon me nikhar kar aaye hain.badhai.
जवाब देंहटाएंहरीतिमा में झांकता है तुम्हारा ही अक्स
जवाब देंहटाएंहे ईश्वर !या तो तुम हो.. या तुम्हारी याद.....
तभी तो छाया है उन्माद ...!!
बहुत सुंदर भाव अनीता जी ....
मन झूम गया पढ़ कर ...!!
bahut sundar .badhai
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएंमसूर की दाल के से
जवाब देंहटाएंगुलाबी बार्डर वाले
सुरमई बादल
मानो संध्या ने पहनी हो नई साड़ी
इन पंक्तियों में बादलों को दी गयी उपमा बहुत प्रभावशाली और मन मोह लेने वाली है.
सादर
मसूर की दाल के से
जवाब देंहटाएंगुलाबी बार्डर वाले
सुरमई बादल
मानो संध्या ने पहनी हो नई साड़ी
बहुत बेहतरीन वर्णन
बहुत अच्छी रचना... बधाई...
जवाब देंहटाएंबहुत कोमल अभिव्यक्ति!!
जवाब देंहटाएंमसूर की दाल के से
जवाब देंहटाएंगुलाबी बार्डर वाले
सुरमई बादल
कमाल का बिम्ब!
तुम जो भर जाते हो अन्जानी सी पुलक
जवाब देंहटाएंशिराओं में सिहरन और उर में एक कसक
विरह और मिलन एक साथ घटित होते हैं जैसे
आकाश में एक ओर ढलता है सूरज
तो दूसरी ओर उगता है चाँद !
अनीता जी बहुत सुंदर पंक्तियाँ दिल को छू लेती भावनाये और इश्वर के प्रति समर्पण. शुभकामनायें.
अनीता जी
जवाब देंहटाएंसुभानाल्लाह.....दिल जीत लिया इस पोस्ट ने......मसूर की दाल...वाह....हैट्स ऑफ |