तीन मुक्तक
सागर और लहरें
लहरों को सबने देखा है
सागर दिखता किसी एक को,
पार गया जो इन लहरों से
सागर मिलता उसी नेक को !
खुद
बोझ उठाये है यह धरती
फिर भी तन है बोझ से हारा
मनन करे मन, बूझे बुद्धि
खुद को जाने किसने मारा ?
नारी
शक्ति की आकर जो धारे, सदा बहाए स्नेहिल धारे
शुभ ही झरता जिसके मन से, नारी जग को सदा संवारे,
नन्हीं थी तब स्मित फैलाया, हुई युवा संसार बसाया
माँ बन कर वह हुई प्रवाहित, स्वयं को एक आधार बनाया !
अनिता निहालानी
२२ जून २०११
शक्ति की आकर जो धारे, सदा बहाए स्नेहिल धारे
जवाब देंहटाएंशुभ ही झरता जिसके मन से, नारी जग को सदा संवारे,
नन्हीं थी तब स्मित फैलाया, हुई युवा संसार बसाया
माँ बन कर वह हुई प्रवाहित, स्वयं को एक आधार बनाया
bahut sateek.
स्वर्ण और आभूषण में
जवाब देंहटाएंसागर और लहरों में,
सूर्य और किरणों में
रजनीश और रश्मियों में.
आखिर क्या है - भेद?
और क्या है - अभेद?
...
इनमे पूर्ववर्ती यदि अक्षर है
तो परवर्ती है - शब्द व्यापार.
जो तैयार करता है किसी
साहित्य किसी काव्य का आधार
इसी साहित्य में इसी काव्य में
अपने अस्तित्वपूर्ण अर्थ का विस्तार
पाता है - वह स्वर्ण, वह सागर..,
वह दिनकर वह रजनीश ....
बनकर किसी वागीश का शिष्य.
माँ बन कर वह हुई प्रवाहित, स्वयं को एक आधार बनाया
जवाब देंहटाएंteenon hi muktak bahut sundar v sarthk ban pade hain Anita ji .bahut bahut badhai .
तीनों मुक्तक बहुत ही अच्छे लगे ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर-सुन्दर-सुन्दर भाई|
जवाब देंहटाएंउत्तम-उत्तम-उत्तम भाई ||
सुन्दर भाई -उत्तम भाई-
मस्त बनाई -मस्त लिखाई||
खूब बताई खूब बधाई ||
तीनो ही मुक्तक शानदार लगे.......बहुत खूब|
जवाब देंहटाएंतीनों मुक्तक बेहद उत्कृष्ट रचनाऐं हैं.
जवाब देंहटाएंआपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें
आप सभी का बहुत बहुत आभार! डॉक्टर साहब व रविकर जी ने तो काव्य में टिप्पणी कर अपनी कला का बेड उम्दा नमूना प्रस्तुत किया है.. पुनः आभार!
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