थामे क्यों तुम तम का छोर
छुप छुप कर वह झांक रहा है
हौले हौले कदम उठाता,
होकर भी जो ना होने का
इस दुनिया का भरम निभाता !
दूर असत् से करो हमें तुम
सत् की चाह जगी है मन में,
सदियों से सुनता यह विनती
सत् देखे ना वह जीवन में !
अंधकार नहीं भाता है
ले चल तू प्रकाश की ओर,
सुन के वह अचरज करता है
थामे क्यों तुम तम का छोर !
मृत्यु नहीं अमरता वर दो
युग-युग से मानव ने गाया,
नित विनाश का खेल चल रहा
नजर नहीं उसको यह आया !
‘जो है केवल वही, वही है
जो नहीं है भ्रम है भारी,
कोमल सी इक मृदु अनुभूति
छवि उसकी सुखद है न्यारी !
सुबह सुबह आपकी कविता पढकर मन प्रसन्न हो गया है ,अनीता जी.
जवाब देंहटाएंअंधकार नहीं भाता है
ले चल तू प्रकाश की ओर,
सुन के वह अचरज करता है
थामे क्यों तुम तम का छोर !
जो है केवल वही, वही है
जवाब देंहटाएंजो नहीं है भ्रम है भारी,
कोमल सी इक मृदु अनुभूति
छवि उसकी सुखद है न्यारी ! बहुत खुबसूरत पंक्तिया....
खुबसूरत अंदाज ||
जवाब देंहटाएंखुबसूरत पंक्तिया ||
बधाई ||
वाह अनीता जी जीवन दर्शन करा दिया।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...
जवाब देंहटाएंमृत्यु नहीं अमरता वर दो
जवाब देंहटाएंयुग-युग से मानव ने गाया,
नित विनाश का खेल चल रहा
नजर नहीं उसको यह आया !
... बहुत सुंदर सार्गार्भित अभिव्यक्ति.... आभार
असतो मा सद्गमय....तमसो मा ज्योतिर्मय...........का पूरा अर्थ उतर दिया है पोस्ट में......सुन्दर रचना........
जवाब देंहटाएंमृत्यु नहीं अमरता वर दो
जवाब देंहटाएंयुग-युग से मानव ने गाया,
नित विनाश का खेल चल रहा
नजर नहीं उसको यह आया !
वाह बहुत खूबसूरती से लिखा है ..