लौटती रहती लहर वह
इक लहर सागर की ज्यों हो
ऊर्जा ले तट पे आये,
सौंप कर सारा खजाना
लौट खाली हाथ जाये !
पुनः नूतन वेश धरकर
पुनः भीतर जोश भरकर,
लौटती रहती लहर वह
खो चुकी वह होश पागल !
या चमकती दामिनी हो
तड़ित पल भर को चमकती,
शोर करती लुप्त होती
‘मैं’ भी हूँ यह गीत गाती !
पुष्प कोई अधखिला सा
जन्म जिसका हो रहा है,
कब खिला कब मृत हुआ है
कौन गिनती कर सका है !
हम भी इस सृष्टि पटल पर
कुछ पलों का चित्र ही हैं,
कब उठेगी तूलिका वह
कब हमारे वश में है !
हम भी इस सृष्टि पटल पर
जवाब देंहटाएंकुछ पलों का चित्र ही हैं,
कब उठेगी तूलिका वह
कब हमारे वश में है !
ब्ल्कुल सही कहा आपने।
सादर
हम भी इस सृष्टि पटल पर
जवाब देंहटाएंकुछ पलों का चित्र ही हैं,
बहुत बढ़िया प्रस्तुति ||
शुभ-कामनाएं ||
http://neemnimbouri.blogspot.com/2011/10/blog-post_15.html
जवाब देंहटाएंइक लहर सागर की ज्यों हो
जवाब देंहटाएंऊर्जा ले तट पे आये,
सौंप कर सारा खजाना
लौट खाली हाथ जाये ! behtreen rachna...
म भी इस सृष्टि पटल पर
जवाब देंहटाएंकुछ पलों का चित्र ही हैं,
कब उठेगी तूलिका वह
कब हमारे वश में है !
जीवन का अंतिम सत्य यही है।
या चमकती दामिनी हो
जवाब देंहटाएंतड़ित पल भर को चमकती,
शोर करती लुप्त होती
‘मैं’ भी हूँ यह गीत गाती !
जो हमारे वश में है, उसे करने से हम क्यों चूकें।
हम भी इस सृष्टि पटल पर
जवाब देंहटाएंकुछ पलों का चित्र ही हैं,
कब उठेगी तूलिका वह
कब हमारे वश में है !
सही मार्गदर्शन करती सुंदर प्रस्तुति.
जीवन का सार समाया है आपकी इस रचना में
जवाब देंहटाएंलहर हर बार आती, संभवतः हम उसका आशय समझ लें।
जवाब देंहटाएंहम भी इस सृष्टि पटल पर
जवाब देंहटाएंकुछ पलों का चित्र ही हैं,
सच है!
सुन्दर विम्ब प्रयुक्त हुए हैं!
हम भी इस सृष्टि पटल पर
जवाब देंहटाएंकुछ पलों का चित्र ही हैं,
कब उठेगी तूलिका वह
कब हमारे वश में है !
.....bahut sahi baat!!
बिल्कुल सही कहा कब उठेगी तूलिका कब हमारे वश मे है……………बहुत सुन्दर जीवन दर्शन्।
जवाब देंहटाएंगीत में प्रकृति का सुन्दर चित्रण.
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत पोस्ट हमेशा की तरह :-)
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