यह अमृत का इक सागर है
बुद्धि पर ही जीने वाले
दिल की दुनिया को क्या जानें,
वह कुएं का पानी खारा
यह अमृत का इक सागर है !
तर्कों का जाल बिछाया है
क्या सिद्ध किया चाहोगे तुम,
जो शुद्ध हुआ मन, सुमन हुआ
वह भूलभुलैया भ्रामक है !
शिव तत्व ही सत्य जगत का है
मानव के दिल में प्रकट हुआ,
बुद्धि भी नतमस्तक होती
छलके जब बुद्ध की गागर है !
दो आँसू बन के छलक गया
भीतर जब नहीं समाय रहा,
लेकिन जग यह क्या समझेगा
सुख के पीछे जो पागल है !
टुकुर-टुकुर तकते दो नैना
भीतर प्रज्ज्वलित एक प्रकाश,
अक्सर दुनिया रोया करती
जब तक नभ केवल बाहर है !
तर्कों का जाल बिछाया है
जवाब देंहटाएंक्या सिद्ध किया चाहोगे तुम,
जो शुद्ध हुआ मन, सुमन हुआ
वह भूलभुलैया भ्रामक है !
वाह ..बहुत सुन्दर रचना ..
बुद्धि भी नतमस्तक होती
जवाब देंहटाएंछलके जब बुद्ध की गागर है !
सच है.....एक दशा है जब बुद्धि हथियार दाल देती है......पर उससे पहले सारे प्रपंच करती है |
दो आँसू बन के छलक गया
जवाब देंहटाएंभीतर जब नहीं समाय रहा,
लेकिन जग यह क्या समझेगा
सुख के पीछे जो पागल है !.....बहुत गहन विचार..
टुकुर-टुकुर तकते दो नैना
जवाब देंहटाएंभीतर प्रज्ज्वलित एक प्रकाश,
अक्सर दुनिया रोया करती
जब तक नभ केवल बाहर है !………………सही कहा ह्रदयाकाश मे उतर जाओ एक बार तो बाहरी किसी तत्व की कोई जरूरत ही नही होगी।
गहन अभिवयक्ति.....
जवाब देंहटाएंसंगीता जी, इमरान जी, माहेश्वरी जी, वन्दना जी व सुषमा जी आप सभी बहुत बहुत आभार... पाठकों की प्रतिक्रिया कब और कैसे लिखने की प्रेरणा बन जाती है, पता ही नहीं चलता.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कविता।
जवाब देंहटाएं----
कल 18/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
चर्चा मंच-701:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
दो आँसू बन के छलक गया
जवाब देंहटाएंभीतर जब नहीं समाय रहा,
लेकिन जग यह क्या समझेगा
सुख के पीछे जो पागल है !
सुन्दर रचना...
सादर बधाई
यशवंतजी, दिलबाग जी व संजय जी, बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंतर्कों का जाल बिछाया है
जवाब देंहटाएंक्या सिद्ध किया चाहोगे तुम,
जो शुद्ध हुआ मन, सुमन हुआ
वह भूलभुलैया भ्रामक है ...
'
सच है बहुत सी बातें तर्कों से परे होती हैं ... बहुत ही सुन्दर रचना है ..
सुंदर!
जवाब देंहटाएंशिव तत्व ही सत्य जगत का है
जवाब देंहटाएंमानव के दिल में प्रकट हुआ,
बुद्धि भी नतमस्तक होती
छलके जब बुद्ध की गागर है !
बहुत सार्थक रचना ..
आभार ..
मेरी नई पोस्ट के लिए पधारे..
bahut hi sundar rachana hai...
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